बारिश से पर्दा


बहुत बारिश हो रही थी।

तुमने कहा के खिड़कियाँ बंद कर दो जरा,

पानी की बूंदों के छींटे ख़राब कर रहे हैं मासूम सी नींद मेरी।

सो गयी थी तुम फिर ये सोच कर के खिड़कियाँ बंद हो गयी हैं शायद,

और अगले दिन सुबह – सुबह बड़ी ताज़गी से तुमने मेरी थकी हुई आँखों पर कई तंज़ भी कसे थे।

याद हो गा तुमको शायद, याद तो हो गा ही।

पर क्या ये मालूम है तुमको?

वो खिड़कियाँ बंद नहीं हो रही थीं,

मैंने खुद को पर्दा बनाया था उस रात।

मैं बहुत देर तक भीगता रहा था उस रात।