ये कैसी जगह है मेरे यारा
ये कैसी जगह है मेरे यारा
दो पल का सुकूँ भी कितना मुश्किल है यहाँ
बड़ी ही संजीदगी से तलाश करते हैं अपने ही यहाँ अपनो को
हर किसी को डर है के वो बुरा मान जाएँगे
पत्थर जैसे हर नक़ाब के पीछे एक तड़पता हुआ चेहरा है
चट्टानों से मज़बूत हौसलों के पीछे एक कोमल सा धड़कता हुआ दिल
डर के साये में पनप्ती हुई ज़िंदगी का मिज़ाज़ तो देखो सूरज
ना चाहते हुए भी हर शमा अपने आप को परवाना समझने पर मज़बूर है