रास्ते की व्यथा
अरे भाई ज़रा रुको, सुनो तो, कहाँ भागे जा रहे हो?
अच्छा चलो थोड़ी देर उस पेड़ की ओट में बैठ जाओ
कोई अपना आएगा लेने तुम्हें, के पल कुछ ज़िंदगानी के मेरे साथ भी काट लो
शिकन पोछ लो अपनी, चलो कुछ बातें करते हैं
कुछ बताओ अपने बारे में, कुछ मेरी भी सुनो
दो पल मुझसे बात करो, यूँ मौन न रहो
बहुत व्यग्र हूँ किसी से बात करने को
अपनी अकेली – अनकही दास्ताँ सुनाने को